काला मोतियाबिंद की नई तकनीक से सर्जरी, सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स ने डॉक्टरों को दिया प्रशिक्षण
– सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स ने ग्लॉकोस कॉर्पोरेशन के साथ आयोजित की वर्कशॉप
-वर्कशॉप में देशभर के डॉक्टरों को लाइव सर्जरी दिखाकर इलाज के लिए किया गया ट्रेन
-ग्लूकोमा यानी काला मोतियाबिंद की सर्जरी के बारे में दी गई जानकारी
अलीगढ़ न्यूज़: आंखों के मामलों में देश के लीडिंग संस्थान सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स ने ग्लॉकोस कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर अपनी तरह की एक वर्कशॉप आयोजित की. इसमें ग्लूकोमा (काला मोतियाबिंद) के लेटेस्ट इलाज के बारे में बताया गया जिससे लोगों की जिंदगी बदल रही है.
ये एक दिवसीय वर्कशॉप थी, जिसमें डॉक्टरों को मिनिमली इनवेसिव ग्लूकोमा सर्जरी (MIGS) के बारे में अवेयर किया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा मरीजों को लाभ पहुंच सके. ये पहली बार है जब देश में इस तरह की कोई वर्कशॉप आयोजित की गई हो, जिसमें ग्लूकोमा स्पेशलिस्ट को ट्रेन करने के लिए लाइव सर्जरी की गई. ग्लूकोमा के इलाज में ये बड़ा पड़ाव माना जा सकता है. इस वर्कशॉप में देशभर से डॉक्टर शामिल हुए ताकि ज्यादा से ज्यादा आबादी को लेटेस्ट इलाज का फायदा मिल सके और उनकी जिंदगी रोशन हो सके.
मौजूदा वक्त में, ग्लूकोमा दुनियाभर में अंधापन का प्रमुख कारण है. ज्यादातर मामलों में इसका पता तब चलता है जब किसी व्यक्ति को देखने में ज्यादा ही परेशानी होने लगती है. चिंता की बात ये है कि 40 वर्ष से ऊपर के हर 40 लोगों में से एक व्यक्ति को ये समस्या होती है. फिलहाल, दुनियाभर में लगभग 78 मिलियन लोगों में ग्लूकोमा डायग्नोज हुआ है. 2040 तक ग्लूकोमा के मामले 111.8 मिलियन लोगों तक बढ़ने की उम्मीद है.’’
एक तरफ जहां बढ़ रहे केस के ये आंकड़े डराते हैं वहीं दूसरी तरफ इलाज के एडवांस तरीकों ने बहुत कुछ आसान भी कर दिया है. ग्लूकोमा के मरीज अब आराम से अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं. मिनिमली इनवेसिव ग्लूकोमा सर्जरी (MIGS) जैसी एडवांस तकनीक को लोगों तक पहुंचाने के लिए मकसद से ही सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स ने ग्लॉकोस के साथ मिलकर 19 मार्च 2023 को ग्लॉकोस स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम आयोजित किया.
इस वर्कशॉप का नेतृत्व एमडी एम्स, डायरेक्टर ग्लूकोमा, सेंटर फॉर साइट डॉक्टर हर्ष कुमार (पद्मश्री) ने किया. साथ ही सेंटर फॉर साइट कंसल्टेंट डीओ, डीएनबी, FICO एफएमआरएफ डॉक्टर अमित पांडे ने भी इस वर्कशॉप को लीड किया. इन विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे ग्लूकोमा की रेगुलर स्क्रीनिंग फायदेमंद साबित होती है, और रोग का जल्दी पता लग जाने से मरीज को उसकी दृष्ट खोने से बचाया जा सकता है जो कि ‘साइलेंट थीफ ऑफ साइट’ होता है. विशेषज्ञों ने ये भी बताया कि अगर ग्लूकोमा के मामले में लापरवाही की जाए और लंबे समय तक बिना इलाज के इसे छोड़ दिया जाए तो ये कितना गंभीर हो सकता है.
वर्कशॉप का मुख्य एजेंडा डॉक्टरों को लाइव MIGS का अनुभव देना था ताकि उनके मरीज भविष्य में इससे लाभान्वित हो सकें. डॉक्टर हर्ष और डॉक्टर अमित ने बताया कि कैसे MIGS तकनीकी रूप से उन्नत है और ग्लूकोमा के रोगियों के लिए एक वरदान है. खासकर, ऐसे मरीजों के लिए जिन्हें सर्जरी की आवश्यकता होती है. पारंपरिक सर्जरी की तुलना में मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के कई लाभ हैं और यह एक ऐसी चीज है जिसके बारे में रोगियों में अधिक जागरूकता की आवश्यकता है.
ग्लूकोमा मरीजों के लिए MIGS के फायदे गिनाते हुए डॉक्टर हर्ष कुमार ने आगे बताया, ‘’ये बहुत ही सटीक प्रक्रिया है, जिसमें कोई स्टिच नहीं लगाया जाता और इसे पूरा करने में सिर्फ 7-10 मिनट लगते हैं. इसमें मरीज की आंखों में बहुत ही मिनिमल एक्सेस होता है, जिसके चलते बिना किसी परेशानी के मरीज की रिकवरी तुरंत हो जाती है. ये सर्जरी ग्लूकोमा की शुरुआती स्टेज में भी की जा सकती है ताकि आगे आंखों की रोशनी का नुकसान हो.’’
मौजूदा वक्त में उपलब्ध ग्लूकोमा की अलग-अलग तरह की सर्जरी के बीच इस वर्कशॉप लेटेस्ट ट्रीटमेंट यानी आई स्टेंट (iStent) इंप्लांटेशन सर्जरी पर फोकस किया गया. आई स्टेंट मानव शरीर में होने वाला दुनिया का सबसे छोटा इंप्लांटेशन है. ये ग्लूकोमा ट्रीटमेंट के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है.
इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए डॉक्टर अमित पांडे ने कहा, ‘’आई स्टेंट इंजेक्ट इस तरह से डिजाइन किया गया है जिसकी मदद से आंखों में फ्लूड का फ्लो बढ़ता है, ये आई प्रेशर को नॉर्मल रखने में मदद करता है और ऑप्टिक नर्व को डैमेज होने से बचाता है. जो भी मरीज बिना किसी परेशानी के अपनी आंखों की रोशनी बचाना चाहते हैं उनके लिए ये ग्लूकोमा इंप्लांट बहुत ही फायदेमंद है. यह न केवल आंख के नेचुरल फ्लूड आउटफ्लो को रिस्टोर करता है बल्कि निष्क्रिय भी रहता है यानी शरीर में किसी अन्य समस्या का कारण नहीं बनता है. आई स्टेंट इंजेक्शन ग्लूकोमा दवा पर निर्भरता को कम करने या समाप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है और ये बहुत ही सेफ माना जाता है.’’
वर्कशॉप में चर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर हर्ष कुमार ने कहा, ‘’मौजूदा वक्त में आई स्टेंट डिवाइस पूरी दुनियाभर में 10 लाख से ज्यादा आंखों में इंप्लांट की जा चुकी है. ज्यादा से ज्यादा आंखों के मरीज इस तकनीक का लाभ ले रहे हैं.’’