रविवार को मनाया जायेगा करवा चौथ व्रत, समसप्तक, बुधादित्य सहित पाँच योगों में मनाया जायेगा सौभाग्य का पर्व: स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज
अलीगढ़ न्यूज़: कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सुहाग का पर्व यानि करवा चौथ मनाया जाता है, इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और सेहत के लिए निर्जला व्रत रखतीं हैं और रात्रि चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है। पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व से जुडा यह व्रत सर्व प्रथम माँ पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। कालांतर में द्रौपदी ने भी पांडवों को संकट से मुक्ति दिलाने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था।
वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज के अनुसार चतुर्थी तिथि रविवार यानि कल प्रातः 06:46 मिनट से प्रारंभ होकर 21 अक्टूबर प्रातः 04:16 मिनट पर सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो जाएगी ।वहीं ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 04:44 मिनट से 05:35 मिनट तक रहेगा।अभिजीत मुहूर्त प्रातः 11:43 मिनट से दोपहर 12:28 मिनट तक रहेगा, चन्द्रोदय रात्रि 07:58 पर होगा।
अतः 20 अक्टूबर को करवा चौथ व्रत रखा जाएगा। इस बार करवाचौथ पर समसप्तक योग, बुधादित्य योग के साथ गजकेशरी, महालक्ष्मी और शश योग आदि दुर्लभ संयोग बनने के कारण यह करवा चौथ विशेष मंगलकारी रहेगी।
स्वामी जी ने बताया कि करवा चौथ व्रत रखने वाली महिलाएं नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान आदि करके आचमन के बाद अपने सौभाग्य एवं पुत्र पौत्रादि तथा निश्चल संपत्ति की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करूंगी कहकर व्रत का संकल्प लें। यह व्रत निराहार ही नहीं, अपितु निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है। इस व्रत में शिव पार्वती, कार्तिकेय और गौरा का पूजन करने का विधान है।
अतः भगवान शिव परिवार का विधि विधान से षोडशोपचार पूजा करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, सिंदूर, चूडियां शीशा, कंघी एवं दक्षिणा रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए। उसके बाद करवा चौथ महत्व की कथा सुनकर चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पति का आशीर्वाद लेकर पति द्वारा जल लेकर व्रत को पारण करें।
करवा चौथ व्रत की कथा को लेकर स्वामी पूर्णानंदपुरी जी ने बताया कि वैसे तो अनेकों पौराणिक कथाएं करवा चौथ से जुडी हैं लेकिन संक्षिप्त कथा के अनुसार शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।
परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।