सकारात्मक शक्तियों के संचार हेतु महायज्ञ है जरुरी: स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज

सकारात्मक शक्तियों के संचार हेतु महायज्ञ है जरुरी: स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज

अलीगढ़ न्यूज़- जी.टी रोड स्थित प्राचीन श्री हनुमान मंदिर पर चल रहे राम दरबार मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के तीसरे दिन विद्वान आचार्यों द्वारा वैदिक मन्त्रोच्चार के साथ महायज्ञ किया गया।

वैदिक ज्योतिष संस्थान के स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज के सानिध्य में चल रहे इस अनुष्ठान के तहत आचार्य गौरव शास्त्री, रवि शास्त्री, शिवम शास्त्री, पंडित संतोष शर्मा, पंडित अनुज शर्मा एवं ओम वेदपाठी सहित अन्य अचार्यों ने नवनिर्मित प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हेतु प्रातः कालीन बेला में भगवान गणेश, भूमि, नवग्रह आदि देवताओं का आवाहन एवं पूजन अर्चन करके महायज्ञ का आयोजन किया। जिसमें मुख्य यजमान श्री अंकित पालीवाल, नेहा पालीवाल, मुकेश सैनी, सत्यप्रकाश शर्मा सहित अन्य यजमानों द्वारा आहुतियाँ दी गयीं।

स्वामी जी ने इस अवसर पर जानकारी देते हुए कहा कि जिस प्रकार एक अच्छा मूर्तिकार किसी प्रतिमा को तराशकर भगवान का रूप देता है, उसी प्रकार यदि उस प्रतिमा का योग्य ब्राह्मणों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाए तो वह एक पत्थर ही रहती है। इस आयोजन में कोई भी प्रतिमा विभिन्न चरणों से गुजरती है, अधिवास वह प्रक्रिया है, जिसमें मूर्ति को विभिन्न सामग्रियों में डुबोया जाता है। इसके तहत एक रात के लिए, मूर्ति को पानी में रखा जाता है, जिसे जलाधिवास कहा जाता है। फिर इसे अनाज में डुबोया जाता है, जिसे धन्यधिवास कहा जाता है। इसके बाद मूर्ति को अनुष्‍ठानिक स्‍नान कराया जाता है। इस दौरान अलग-अलग सामग्रियों से प्रतिमा का स्नान अभिषेक कराया जाता है। इस संस्कार में 108 प्रकार की सामग्रियां शामिल होती हैं।जिनमें पंचामृत, सुगंधित फूल व पत्तियों के रस, गाय के सींगों पर डाला गया पानी और गन्‍ने का रस शामिल होता है।

उन्होंने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रतिमा को जगाने का समय आता है। इस दौरान कई मंत्रों का जाप किया जाता है, जिसमें विभिन्न देवताओं से आने और मूर्ति के विभिन्न हिस्सों को चेतन करने के लिए कहा जाता है। सूर्य देवता से आंखें, वायु देवता से कान, चंद्र देवता से मन आदि जागृत करने का आह्वान होता है।अंतिम चरण में मूर्ति की आँखों का खुलना अथवा पट खुलना भी कहा जाता है जिसमें प्रतिमा की आंखों के चारों ओर सोने की सुई के साथ काजल लगाया जाता है, यह प्रक्रिया मूर्ति के पीछे से की जाती है।

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