भैरव जयंती- भगवान शिव के रौद्र रूप में अवतरित हुए काल भैरव: स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज
अलीगढ़ न्यूज़: भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की जयंती 23 नवंबर को बड़े ही धूम धाम से मनायी गयी। काशी के कोतवाल के नाम से विख्यात महाकाल भैरव जयंती हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। तंत्र साधना के देवता काल भैरव की पूजा वैदिक ज्योतिष संस्थान के तत्वावधान में स्वर्ण जयंती नगर में की गयी।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज के सानिध्य में आचार्य गौरव शास्त्री, रवि शास्त्री, माधव शास्त्री, ओम वेदपाठी, ऋषभ शास्त्री आदि अचार्यों ने विधि विधान से भैरव जी की प्रतिमा का पूजन अर्चन किया और माल्यार्पण कर स्तुति एवं पाठ भी किये।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने इस अवसर पर बताया एक बार ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर में सर्वश्रेष्ठ को लेकर बहस हुई, अंततः ऋषि मुनियों ने भगवान शंकर को सर्वश्रेष्ठ बताया। ब्रह्मा जी क्रोधित होकर भगवान शिव का अपमान किया। जिससे देवाधिदेव महादेव ने रौद्र रूप धारण किया। इसी और इसी स्वरुप से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने घमंड में चूर ब्रह्मा के सर को काट दिया। जिससे उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। भगवान शिव ने उनको सभी तीर्थों का भ्रमण करने का सुझाव दिया। तीर्थ भृमण करने के बाद अंत में काशी पहुंचे, जहां पर उनको ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली।
स्वामी जी के अनुसार भैरव की पूजा तंत्र और साधना पद्धति में विशेष महत्व रखती है। वे समय, मृत्यु, और सुरक्षा के देवता माने जाते हैं। भैरव जी की आराधना करने से भय, पाप, और बुरी शक्तियों का नाश होता है। इनकी पूजा से घर में नकारात्मक शक्तियां,जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।