सहस्त्र वर्षों के तप का फल देता है संगम तट कल्पवास: स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज

अलीगढ़/ प्रयागराज: महाकुम्भ मेला में शाही स्नान की श्रंखलाओं में बुधवार को कल्पवासियों का विशेष स्नान माघ महीने की पूर्णिमा को संपन्न हुआ। विश्व विख्यात महाकुम्भ में व्रत, नियम, संयम और सत्संग के साथ कल्पवास का विशिष्ट विधान है। इस वर्ष महाकुम्भ में 10 लाख से अधिक लोगों ने विधिपूर्वक कल्पवास किया है। पौराणिक मान्यता है कि माघ मास पर्यंत प्रयागराज में संगम तट पर कल्पवास करने से सहत्र वर्षों के तप का फल मिलता है। महाकुम्भ में कल्पवास करना विशेष फलदायी माना जाता है।
वैदिक ज्योतिष संस्थान के तत्वावधान में सेक्टर 16 स्थित संगम लोअर मार्ग एवं सेक्टर 9 स्थित बजरंग दास मार्ग पर पर चल रहे हरिगढ़ साधना शिविर में कल्पवास कर रहे श्रद्धालुओं ने परंपरा के अनुसार बुधवार माघ पूर्णिमा के अवसर पर संगम स्नान कर एक महीने कल्पवास की अवधि को समाप्त किया।
शिविर का मार्ग दर्शन कर रहे शहर के धर्मगुरु स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने कल्पवास के महत्व और उसकी आस्था के विषय में जानकारी देते हुए कहा कि पद्मपुराण के अनुसार पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक एक माह संगम तट पर कल्पवास व्रत एवं सत्संग का विधान है। कुछ लोग पौष माह की एकादशी से माघ माह में द्वादशी के दिन तक भी कल्पवास करते हैं।
आस्था और आध्यात्म के महापर्व, महाकुम्भ में कल्पवास करना विशेष फलदायी माना जाता है। इस वर्ष महाकुम्भ में देश के कोने-कोने से आये लोग संगम तट पर कल्पवास कर रहे हैं।शास्त्रों के अनुसार कल्पवासी माघ पूर्णिमा के दिन संगम स्नान कर, व्रत रखते हैं। इसके बाद अपने कल्पवास की कुटीरों में आकर सत्यनारायण कथा सुनने और हवन पूजन करने का विधान है। कल्पवास का संकल्प पूरा कर कल्पवासी अपने तीर्थपुरोहितों को यथाशक्ति दान करते हैं।
साथ ही कल्पवास के प्रारंभ में बोये गये जौं को गंगा जी में विसर्जित करेंगे और तुलसी जी के पौधे को साथ घर ले जायेंगे। तुलसी जी के पौधे को सनातन परंपरा में मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है। महाकुम्भ में बारह वर्ष तक नियमित कल्पवास करने का च्रक पूरा होता है। यहां से लौट कर गांव में भोज कराने का विधान, इसके बाद ही कल्पवास पूर्ण माना जाता है।
इसके साथ ही हरिगढ़ साधना शिविर में चल रहे महायज्ञ में श्रद्धालुओं ने आहुतियाँ दीं। अन्नपूर्णा रसोई में निर्मित पकवानों का भोग लगाकर सभी भक्तों ने प्रसाद ग्रहण कर मेला में आए शरणार्थी को भी भोजन करवाया।स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने माघ पूर्णिमा पर बजरंगदास मार्ग स्थित शिविर के समापन की घोषणा भी की। शिविर संयोजक आचार्य गौरव शास्त्री ने बताया कि जनपद के पहले शिविर आयोजन में वैदिक ज्योतिष संस्थान एवं विश्व कल्याण सेवा संस्थान के सदस्यों की मेहनत और तप का फल मिला हमें अलीगढ से आने वाले भक्तों की सेवा का अवसर मिला आगे भी इसी प्रकार हमारी संस्था सेवा भाव का कार्य करती रहेगी। सांय कालीन गंगा आरती में आचार्य गौरव शास्त्री,अंकित शास्त्री,ओम शास्त्री,नवीन चौधरी,सौरभ शर्मा,राजेश्वरी शर्मा,आभा शर्मा,राजा शर्मा,वाणी शर्मा,विराट शर्मा,अजीत चौहान,निपुण उपाध्याय,सौरभ रावत आदि लोगों की उपस्थिति रही।