एएमयू: सर सैयद अहमद खान की 127वीं पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित

अलीगढ़, 27 मार्चः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय समुदाय ने आज संस्थापक सर सैयद अहमद खान की 127वीं पुण्यतिथि के अवसर पर एएमयू जामा मस्जिद में कुरआन ख्वानी (कुरआन पाठ) और दुआ के साथ उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने उनके मजार (मकबरे) पर चादरपोशी (फूलों से श्रद्धांजलि) की और सर सैयद की शिक्षा, सेवा और सामाजिक सुधार की दृष्टि के प्रति संस्थान की प्रतिबद्धता को दोहराया।
सर सैयद अहमद खान (1817-1898) ब्रिटिश औपनिवेश काल में एक प्रमुख समाज सुधारक, शिक्षाविद् और विचारक थे। 17 अक्टूबर, 1817 को दिल्ली में जन्मे सर सैयद ने पारंपरिक इस्लामी शिक्षा प्राप्त की और फारसी व अंग्रेजी की पढ़ाई की। आधुनिक विज्ञान में गहरी रुचि रखने के कारण उन्होंने मुसलमानों तथा पिछड़े हुए भारतीयों के बीच वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा देने की वकालत की। अपनी वैज्ञानिक दृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने एक साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना की, जिसने उन वैज्ञानिक सामग्रियों का उर्दू में अनुवाद किया जो उस समय अंग्रेजी में ही उपलब्ध थीं। 1877 में उन्होंने मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की जो बाद में 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के रूप में विकसित हुआ। उन्होंने एएमयू को एक ऐसा संस्थान बनाने की परिकल्पना की जो भारतीयों में पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा देते हुए उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी संरक्षित रखे।
उनके साहित्यिक कार्य, जैसे ‘आसार-उस-सनादीद‘ (प्राचीन नायकों के अवशेष) और ‘द कॉजेज ऑफ द इंडियन रिवोल्ट‘ उनकी बौद्धिक गहराई को दर्शाते हैं। राजा जय किशन दास जैसे प्रमुख व्यक्तित्वों के साथ मित्रता के लिए भी सर सैयद प्रसिद्ध थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता का भी समर्थन किया और हिंदुओं और मुसलमानों की तुलना ‘दुल्हन की दो आंखों‘ से करने वाला उनका रूपक भारत की प्रगति के लिए आपसी सहयोग की उनकी दृष्टि को प्रतिबिंबित करता है। महात्मा गांधी ने उन्हें ष्शिक्षा का पैगंबर‘ कहा था, जो मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाने के उनके अग्रणी प्रयासों को दर्शाता है।
सर सैयद का निधन 27 मार्च, 1898 को रात लगभग 10 बजे, उनके घनिष्ठ मित्र और एएमयू के एक प्रमुख डोनर, नवाब इस्माइल खान, रईस दातावली के घर, दरुल-उन्स परिसर, अलीगढ़ में हुआ जो की वर्तमान में दोदपुर में मौजूद है। जिस कमरे में सर सैयद ने अंतिम सांस ली, वहां एक पत्थर का शिलालेख मौजूद है, हालांकि उस कमरे का कई बार नवीनीकरण हो चुका है।
उन्होंने पिछडे हुए भारतीय मुसलमानों के बीच शैक्षिक सशक्तिकरण और सामाजिक सुधार की एक स्थायी विरासत छोड़ी। उनकी स्थायी विरासत पर विचार प्रकट करते हुए, एएमयू की कुलपति प्रो. नईमा खातून ने इस बात पर जोर दिया कि 1898 में उनका निधन एक गहरा बौद्धिक नुकसान था। उन्होंने कहा कि “उनकी पुण्यतिथि आत्मचिंतन का क्षण है और उनके मिशन और शैक्षिक सशक्तिकरण की दृष्टि को आगे बढ़ाने के हमारे संकल्प का नवीनीकरण है”।
एएमयू के प्रो-वाइस चांसलर प्रो. मोहम्मद मोसिन खान ने सर सैयद की प्रगतिशील दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए उनके विश्वास और तर्क को एकीकृत करने और आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों का उल्लेख किया।
एएमयू रजिस्ट्रार, श्री मोहम्मद इमरान (आईपीएस), प्रॉक्टर प्रो. एम वसीम अली, डीएसडब्ल्यू प्रोफेसर रफीउद्दीन, एमआईसी, पीआरओ, प्रो. विभा शर्मा, निदेशक सर सैयद अकादमी प्रोफेसर एम शाफे किदवई, प्रिंसिपल महिला कॉलेज प्रो. मसूद अनवर अल्वी, प्रोवोस्ट एसएस हॉल (दक्षिण), डॉ अब्दुल रऊफ, प्रोवोस्ट एसएस हॉल (उत्तर), प्रोफेसर आदम मलिक खान, विश्वविद्यालय लाइब्रेरियन, प्रो निशात फातिमा, वित्त अधिकारी नूरस सलाम, अन्य अधिकारियों ने भी शिक्षा और राष्ट्र निर्माण में सर सैयद के अद्वितीय योगदान का सम्मान करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।