सीओपीडी के लक्षणों को न करें इग्नोर, समय पर इलाज से पाएं सांस की समस्या से निजात
अलीगढ़: बढ़ते शहरीकरण और मॉडर्नाइजेशन के दौर में हम अपनी जिंदगी को आसान तो बना रहे हैं, साथ ही साथ अपने स्वास्थ्य को भी बिगाड़ रहे हैं. विकास की गति ने हवा को प्रदूषित कर दिया है, हम जो सांस ले रहे हैं उसमें जहरीली हवाएं घुली हैं जो हमारे फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित कर रही है. इससे सांस की समस्या पैदा हो रही है. लोगों को अस्थमा की शिकायत हो रही है और वो सांस से जुड़ी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की गिरफ्त में आ रहे हैं.
ग्रेटर नोएडा के यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर (ब्रिगेडियर) सरविंदर सिंह ने बताया कि, ये माना जा रहा है कि सांस की समस्याएं 2025 तक पूरी दुनिया में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण बन जाएगी और लोगों में अपंगता का पांचवा सबसे बड़ा कारण यही होगा. अगर डब्ल्यूएचओ के अनुमान के हिसाब से देखें तो मौजूदा वक्त में करीब 80 मिलियन यानी 8 करोड़ लोग हल्की या गंभीर किस्म की सीओपीडी बीमारी से जूझ रहे हैं यानी उन्हें सांस की समस्या है.
वाहनों से निकलने वाला धुआं, बड़े पैमाने पर हो रहे औद्योगीकरण, निर्माण गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण की वजह से सांस की समस्याएं होने लगती हैं. जिस वक्त इस तरह के प्रदूषण से निकलने वाले कण हमारे श्वसन पथ में प्रवेश करते हैं, ये एक ज्वलनशील झरना एक्टिव कर देते हैं जिससे हमारे फेफड़ों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचता है.
सीओपीडी में मुख्यत: फेफड़े खराब होते हैं, लेकिन साथ ही सांस लेने में समस्या और फेफड़ों का इंफेक्शन भी हो जाता है. यहां तक कि इन सबके कारण दिल की बीमारी का भी खतरा रहता है और स्ट्रोक भी पड़ सकते हैं. कुल मिलाकर कहा जाए तो ये एक ऐसी समस्या है जो हमारे शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करती है, यहां तक कि हड्डियों को भी.
डॉक्टर ब्रिगेडियर सरविंदर सिंह ने बताया, ‘’हालांकि, सीओपीडी के ज्यादा मरीज स्मोकिंग की वजह से होते हैं, लेकिन वायु प्रदूषण भी इसका एक अहम कारक होता है. अगर कोई व्यक्ति सीओपीडी से पीड़ित होता है तो उसके ब्लड में कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन का प्रसार नहीं हो पाता है जिसके कारण पर्याप्त ऑक्सीजन फेफड़ों के माध्यम से रक्तप्रवाह में नहीं पहुंच पाती है. इसका असर ये होता है कि कार्बन डाइऑक्साइड की अधिक मात्रा शरीर में बनी रहती है, जिससे परेशानी होती है. क्रोनिक ब्रोंकाइटिस में बलगम के साथ खांसी आती है और ये दो साल तक लगातार तीन-तीन महीने तक आती है. इसके अलावा सांस ठीक से न आना, खरखराहट, सीने में जकड़न, बार-बार रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन होना, टखनों और पैर में सूजन होती है तो ये भी इसके लक्षण हो सकते हैं.’’
सीओपीडी के इन तमाम कारणों को समझने के बाद अब महत्वपूर्ण ये है कि ये बीमारी हमारी हेल्थ पर कितना असर डालती है. कभी-कभी यह हमारे फेफड़ों के मार्ग को अस्तर करने वाले ऊतकों के विनाश का कारण भी बन सकता है और “एम्फायसेमा” का कारण बन सकता है. इसके अलावा फेफड़ों की लंबी बीमारी भी लग जाती है.
डॉक्टर (ब्रिगेडियर) सरविंदर सिंह ने इस बारे में आगे कहा, ‘’सीओपीडी के इलाज की बात की जाए तो ज्यादातर मामलों में व्यक्ति खुद ही इससे निपट सकता है. हालांकि, इसके साथ ही दवाई भी जाती हैं जिनसे सीओपीडी के लक्षणों को खत्म करने में फायदा मिलता है. अगर आप सीओपीडी के मरीज हैं तो डॉक्टर के सुझाव के बिना अपनी दवाई खाने में कोताही न करें और न ही बंद करें. साथ ही इनहेलेशन थेरेपी, ऑक्सीजन थेरेपी, आर्टेरिअल ब्लड गैस टेस्ट (एबीजी) की भी जरूरत पड़ सकती है. इस मामले में नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (एनआईवी) ट्रीटमेंट की जानकारी का भी अभाव है, जिससे सांस की समस्याएं काफी कम हो जाती हैं और गंभीर मरीजों की मौत का खतरा काफी कम हो जाता है.’’
सांस की समस्या वाले लोगों को घर के अंदर ही रहने की सलाह दी जाती है. ऐसे में ये भी जरूरी है कि लोग अपने घर के अंदर के वातावरण को भी सुधारें और जरूरी सावधानियां बरतें.