आपके कान में भी गूंजती हैं आवाजें तो ध्यान दें, हो सकता है ट्यूमर
अलीगढ़ न्यूज़: एकॉस्टिक न्यूरोमा एक हल्के किस्म का ट्यूमर होता है, जिसे वेस्टिबुलर स्कवान्नोमा भी कहते हैं. ये नॉन-कैंसरस होता है और आमतौर पर धीरे-धीरे पनपता है. ये ट्यूमर सुनने वाली न से पनपता है जो कान के अंदर वाले हिस्से से दिमाग की तरफ जाता है. इस नस से जुड़ीं जो अन्य नसें होती हैं उनसे सुनने की क्षमता पर असर पड़ता है और एकॉस्टिक न्यूरोमा हो जाता है. इस बीमारी में मरीज को कम सुनाई देने लगता है, कान बजने लगते हैं यानी कान में आवाजें गूंजने लगती हैं और बेचैनी सी हो जाती है.
एकॉस्टिक न्यूरोमा से अचानक सुनने की क्षमता कम हो सकती है-
आमतौर पर एकॉस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर की शुरुआत एक कान में कम सुनाई देने से ही होती है. इसके बाद कान बजने जैसी समस्या हो जाती है. साथ ही कान भरा हुआ महसूस होता है. एकॉस्टिक न्यूरोमा से अचानक सुनने की क्षमता कम हो सकती है. इसके बाद धीरे-धीरे कई और तरह के लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं. जैसे सिर चकराना, चेहरे का सुन्न पड़ना, चेहरे पर झुनझुनी होना, संतुलन बिगड़ना, चेहरे पर कमजोरी, टेस्ट में बदलाव, चबाने में दिक्कत होना, सिर दर्द, अजीबो-गरीब बातें करना, दिमागी तौर पर कंफ्यूज रहना. साइबरनाइफ रेडियोसर्जरी ने एकॉस्टिक न्यूरोमा के इलाज में क्रांति ला दी है.
एकॉस्टिक न्यूरोमा का इलाज साइबरनाइफ सर्जरी से-
अग्रिम इंस्टिट्यूट फॉर न्यूरो साइंसेज, आर्टेमिस हॉस्पिटल गुरुग्राम में न्यूरो सर्जरी एवं साइबरनाइफ सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने कहा “एकॉस्टिक न्यूरोमा का इलाज साइबरनाइफ सर्जरी से किया जा सकता है. इसमें किसी तरह का कोई जख्म नहीं किया जाता है. मरीजों का इलाज बिना चीर-काट के किया जाता है और इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं आता है. ये पूरी ट्रीटमेंट 1 से 3 सिटिंग में हो जाता है. एक सिटिंग में अधिकतम 40 मिनट लगते हैं. इस इलाज में मरीज को बेहोश करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है और ये पेनलेस होता है. साथ ही इसमें साइड इफेक्ट होने का खतरा भी बहुत कम रहता है. मरीज के सुनने की क्षमता रिकवर हो जाती है और 50-75 फीसदी तक फायदा होता है. चेहरे पर एक साइड अस्थायी सुन्नता 2-3 फीसदी रहती है. साइबरनाइफ सर्जरी के बाद ट्यूमर साइज में यथास्थिति आ जाती है और फिर धीरे-धीरे वह सिकुड़ने लगता है.”
एकॉस्टिक न्यूरोमा कैसे पनपता है, इसके कारण का अभी पता नहीं लग पाया है. हालांकि, ये पाया गया है कि न्यूरोफिब्रोमैटोसिस के कुछ केस एकॉस्टिक न्यूरोमा से जुड़े पाए गए हैं. न्यूरोफिब्रोमैटोसिस एक दुर्लभ बीमारी है, जो एक हेरेडिटरी डिजीज होती है.
एकॉस्टिक ट्यूमर दुर्लभ-
एकॉस्टिक न्यूरोमा स्कवान सेल से बनता है. ये सेल्स शरीर की नर्व सेल्स को कवर करता है. यही वजह है कि इस ट्यूमर को वेस्टिबुलर स्कवान्नोमा कहा जाता है. एकॉस्टिक ट्यूमर ब्रेन की नस के साथ पनपता है. ये नस क्रैनियल या एकॉस्टिक या वेस्टिबुलर नस कहलाती है. ये नस सुनने की क्षमता को कंट्रोल करती है, साथ ही शरीर के संतुलन को बनाए रखती है. एकॉस्टिक ट्यूमर दुर्लभ होता है. दुनियाभर में हर साल 10 लाख की आबादी में 1 से 20 लोगों में एकॉस्टिक न्यूरोमा होता है. पुरुषों के मुकाबले ये महिलाओं में ज्यादा होता है.
डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने कहा “रेडियो सर्जरी तकनीक ट्यूमर को बढ़ने से रोक सकती है. इसमें मरीज को रेडिएशन ट्रीटमेंट की हाई डोज दी जाती है. साइबरनाइफ तकनीक से मरीज के इलाज का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. जब मरीज की रेडियो सर्जरी कर दी जाती है तो एकॉस्टिक न्यूरोमा को बहुत ही बारीकी से मॉनिटर किया जाता है ताकि ये पता चल सके कि ट्यूमर की ग्रोथ रुकी है या नहीं, और वह सिकुड़ना स्टार्ट हुआ है कि नहीं.”